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1 जून 2025

रोमियो एंड जूलियट - विलियम शेक्सपियर की अमर प्रेम कहानी

रोमियो एंड जूलियट - विलियम शेक्सपियर की अमर प्रेम कहानी
रोमियो एंड जूलियट - शेक्सपियर की अमर प्रेम कहानी | हिंदी विश्लेषण

रोमियो एंड जूलियट - विलियम शेक्सपियर की अमर प्रेम कहानी

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विलियम शेक्सपियर का 'रोमियो एंड जूलियट' विश्व साहित्य की सबसे प्रसिद्ध प्रेम कहानियों में से एक है। यह ट्रेजडी नाटक दो युवा प्रेमियों की कहानी कहता है जिनका प्रेम उनके परिवारों के बीच चली आ रही दुश्मनी की भेंट चढ़ जाता है। 1597 के आसपास लिखा गया यह नाटक आज भी प्रासंगिक है और दुनिया भर में मंचित किया जाता है।

रोमियो एंड जूलियट की कहानी (सारांश)

नाटक की कहानी इटली के वेरोना शहर में शुरू होती है जहां मोंटेग्यू और कैपुलेट दो प्रतिष्ठित परिवारों के बीच गहरी दुश्मनी चली आ रही है। कैपुलेट परिवार में एक भव्य पार्टी का आयोजन किया जाता है जहां मोंटेग्यू परिवार का युवक रोमियो घुसपैठ करता है। वहां उसकी मुलाकात कैपुलेट की बेटी जूलियट से होती है और दोनों एक दूसरे के प्रेम में पड़ जाते हैं।

"मेरा प्रेम अंधा है, प्रेम को देखने के लिए आंखों की नहीं बल्कि आत्मा की जरूरत होती है।" - रोमियो

दोनों गुप्त रूप से शादी कर लेते हैं, लेकिन जल्द ही रोमियो को जूलियट के चचेरे भाई टाइबाल्ट को मारने के बाद वेरोना से निर्वासित कर दिया जाता है। इस बीच, जूलियट के माता-पिता उसकी शादी काउंट पेरिस से तय कर देते हैं। फ्रायर लॉरेंस जूलियट को एक योजना सुझाते हैं - एक ऐसी दवा पीने की जो उसे 42 घंटे के लिए मृत जैसी निद्रा में डाल देगी।

नाटक का ट्रेजिक अंत

जूलियट योजना के अनुसार दवा पी लेती है और सभी उसे मृत मान लेते हैं। लेकिन रोमियो तक यह संदेश नहीं पहुंच पाता कि जूलियट की मौत नकली है। वह जूलियट की कब्र पर पहुंचता है और विष पीकर आत्महत्या कर लेता है। जब जूलियट की नींद खुलती है और वह मृत रोमियो को देखती है तो वह रोमियो की खंजर से खुद को मार लेती है। दोनों परिवारों को इस दुखद घटना के बाद अपनी गलतियों का एहसास होता है और वे आपसी दुश्मनी भुलाकर सुलह कर लेते हैं।

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मुख्य पात्रों का विश्लेषण

रोमियो मोंटेग्यू

रोमियो नाटक का नायक है जो शुरू में रोजलाइन नामक युवती के प्रेम में पड़ा होता है। वह भावुक, आदर्शवादी और जल्दबाज़ है। जूलियट से मिलने के बाद उसका प्रेम गहरा और परिपक्व हो जाता है। रोमियो की भावनात्मक तीव्रता और आवेगशीलता अंततः उसकी त्रासदी का कारण बनती है।

जूलियट कैपुलेट

मात्र 13 वर्षीय जूलियट नाटक की नायिका है जो शुरू में बचकानी और आज्ञाकारी होती है लेकिन रोमियो से प्रेम करने के बाद असाधारण साहस और परिपक्वता दिखाती है। वह परंपराओं को चुनौती देती है और अपने प्रेम के लिए सब कुछ त्यागने को तैयार हो जाती है। उसका चरित्र विकास नाटक के सबसे शक्तिशाली पहलुओं में से एक है।

रोमियो एंड जूलियट के प्रमुख विषय

प्रेम की शक्ति

नाटक में प्रेम को एक ऐसी शक्ति के रूप में चित्रित किया गया है जो सामाजिक बंधनों और पारिवारिक दुश्मनियों को तोड़ सकती है। रोमियो और जूलियट का प्रेम तीव्र, निस्वार्थ और परिवर्तनकारी है। शेक्सपियर दिखाते हैं कि कैसे प्रेम व्यक्तियों को रातों-रात परिपक्व बना देता है।

पारिवारिक संघर्ष

मोंटेग्यू और कैपुलेट परिवारों के बीच की दुश्मनी नाटक की मुख्य समस्या है। शेक्सपियर दिखाते हैं कि कैसे अकारण पारिवारिक विवाद निर्दोष युवाओं के जीवन बर्बाद कर देते हैं। अंत में दोनों परिवारों को अपनी गलती का एहसास होता है लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।

"हमारे नाम ही हमारे दुश्मन हैं! तुम मोंटेग्यू नहीं हो, न ही तुम मेरे पिता की बेटी हो। तुम बस मेरी प्रेमिका बनो!" - जूलियट

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रोमियो एंड जूलियट के प्रसिद्ध उद्धरण

शेक्सपियर के इस नाटक में कई ऐसे उद्धरण हैं जो सदियों से लोगों के दिलों में गूंजते रहे हैं:

  • "ओ रोमियो, रोमियो! तुम क्यों हो रोमियो? अपना नाम त्याग दो, या फिर यदि तुम नहीं चाहते, तो बस मेरी प्रेमिका बनने की शपथ लो और मैं फिर कभी कैपुलेट नहीं रहूंगी।"
  • "प्रेम हल्की चीजों से भारी होता है, हवा की तरह हल्का होता है, धुएं की तरह हल्का होता है, फिर भी यह उतना ही उग्र होता है।"
  • "अलविदा! अलविदा! विदाई हमेशा इतनी मीठी दुखभरी होती है कि मैं तुम्हें रात भर अलविदा कहती रहूंगी सुबह तक।"

रोमियो एंड जूलियट का सांस्कृतिक प्रभाव

400 साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी यह नाटक विश्व संस्कृति पर गहरा प्रभाव डालता आया है। इसकी कहानी ने कई फिल्मों, नाटकों, उपन्यासों और संगीत कार्यों को प्रेरित किया है। 'रोमियो एंड जूलियट' की कहानी ने पश्चिमी साहित्य में 'स्टार-क्रॉस्ड लवर्स' (दुर्भाग्यशाली प्रेमी) की अवधारणा को स्थापित किया।

आधुनिक समय में प्रासंगिकता

आज भी यह नाटक इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि यह उन सामाजिक बंधनों और पूर्वाग्रहों की पड़ताल करता है जो प्रेम के मार्ग में बाधा बनते हैं। जाति, धर्म, वर्ग या राष्ट्रीयता के आधार पर विभाजित समाजों में रोमियो-जूलियट की कहानी बार-बार दोहराई जाती है।

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नाटक की साहित्यिक विशेषताएं

भाषा और शैली

शेक्सपियर ने इस नाटक में काव्यात्मक भाषा का प्रयोग किया है। रोमियो और जूलियट के संवाद अक्सर सॉनेट (14 पंक्तियों की कविता) के रूप में होते हैं। नाटक में द्वंद्व, रूपक और प्रतीकों का सुंदर प्रयोग हुआ है। प्रकाश-अंधकार, दिन-रात जैसे प्रतीकों का बार-बार प्रयोग किया गया है।

नाटकीय संरचना

नाटक पांच अंकों में विभाजित है और शेक्सपियर की अन्य ट्रेजेडी की तरह इसमें भी नायक का पतन दिखाया गया है। नाटक में कॉमिक राहत के लिए मर्क्युटियो और नर्स जैसे पात्रों को शामिल किया गया है। शेक्सपियर ने नियति (फेट) की भूमिका पर भी जोर दिया है - कई घटनाएं ऐसी हैं जो संयोग से घटित होती हैं और त्रासदी को अवश्यंभावी बना देती हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

रोमियो एंड जूलियट की कहानी वास्तविक है या काल्पनिक?

रोमियो एंड जूलियट की कहानी काल्पनिक है, हालांकि शेक्सपियर ने इसे पुरानी लोककथाओं और कवि आर्थर ब्रूक की कविता 'द ट्रेजिकल हिस्ट्री ऑफ रोमियस एंड जूलियट' (1562) से प्रेरणा ली थी। इटली के वेरोना शहर में आज भी 'जूलियट का घर' और 'जूलियट की कब्र' पर्यटक आकर्षण हैं, हालांकि ये ऐतिहासिक नहीं हैं।

रोमियो और जूलियट की उम्र क्या थी?

नाटक में जूलियट की उम्र सिर्फ 13 वर्ष बताई गई है, जबकि रोमियो की सही उम्र का उल्लेख नहीं है लेकिन विद्वानों का मानना है कि वह लगभग 16-17 वर्ष का होगा। एलिजाबेथन युग में यह विवाह के लिए सामान्य उम्र थी।

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रोमियो एंड जूलियट नाटक कितने समय में घटित होता है?

नाटक की घटनाएं बहुत तेजी से घटित होती हैं। रोमियो और जूलियट की पहली मुलाकात से लेकर उनकी मृत्यु तक सिर्फ 4-5 दिन का समय लगता है। यह तेज गति नाटक की त्रासदी को और भी अधिक मार्मिक बना देती है।

रोमियो एंड जूलियट को ट्रेजडी क्यों माना जाता है?

इसे ट्रेजडी इसलिए माना जाता है क्योंकि नाटक के नायक-नायिका (रोमियो और जूलियट) का अंत दुखद होता है। शेक्सपियर की ट्रेजेडी की परिभाषा के अनुसार, नायक का पतन उसके अपने चरित्र दोष (यहां आवेगशीलता और जल्दबाजी) और नियति के संयोग से होता है। हालांकि उनकी मृत्यु दोनों परिवारों को सुलह का मार्ग दिखाती है, इसलिए इसमें आशा का संदेश भी निहित है।

निष्कर्ष

विलियम शेक्सपियर का 'रोमियो एंड जूलियट' सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं बल्कि मानवीय भावनाओं, सामाजिक बंधनों और नियति की शक्ति पर एक गहन चिंतन है। यह नाटक हमें सिखाता है कि कैसे अकारण घृणा और हठधर्मिता मानव जीवन को नष्ट कर सकती है। रोमियो और जूलियट की कहानी आज भी करोड़ों लोगों के दिलों में धड़कती है क्योंकि प्रेम और बलिदान की यह गाथा कालजयी है।

"कभी इतनी दुखद कहानी नहीं थी, जितनी रोमियो और उसकी जूलियट की।" - नाटक का अंतिम पंक्ति

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21 मई 2025

परशुराम की संपूर्ण कथा - भाग 1: प्रभु विष्णु का परशुराम अवतार

परशुराम की संपूर्ण कथा - भाग 1: प्रभु विष्णु का परशुराम अवतार
परशुराम की संपूर्ण कथा - भाग 1: प्रभु विष्णु का परशुराम अवतार

परशुराम की संपूर्ण कथा - भाग 1: प्रभु विष्णु का परशुराम अवतार

परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं जो त्रेता युग में प्रकट हुए। इन्हें 'ब्रह्मक्षत्रिय' और 'भृगुवंशी' के नाम से भी जाना जाता है। परशुराम का जन्म धर्म की स्थापना और अधर्म के विनाश के लिए हुआ था।

भगवान परशुराम का चित्र

परशुराम अवतार का महत्व

हिंदू धर्म में परशुराम अवतार का विशेष महत्व है। यह अवतार विष्णु के दस प्रमुख अवतारों में से एक है जो विशेष रूप से क्षत्रिय अहंकार के दमन और ब्राह्मणों की रक्षा के लिए प्रकट हुआ।

परशुराम के विभिन्न नाम

परशुराम को विभिन्न नामों से जाना जाता है:

  • भार्गव - भृगु वंश में जन्म लेने के कारण
  • रामभद्र - राम नाम के कारण
  • जमदग्न्य - पिता जमदग्नि के नाम पर
  • भृगुपति - भृगु वंश के प्रमुख होने के कारण

परशुराम का जन्म और प्रारंभिक जीवन

जन्म कथा

परशुराम का जन्म त्रेता युग में हुआ था। इनके पिता महर्षि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। भृगु ऋषि इनके पूर्वज थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने स्वयं परशुराम के रूप में अवतार लिया था।

"जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म बढ़ता है, तब-तब मैं अवतार लेता हूँ।" - भगवान विष्णु (गीता 4.7)

बचपन और शिक्षा

परशुराम बचपन से ही अत्यंत मेधावी और तेजस्वी थे। उन्होंने अपने पिता जमदग्नि से वेदों और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया। भगवान शिव से उन्होंने युद्ध कला और दिव्य अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा प्राप्त की।

परशुराम के प्रमुख गुण

परशुराम अवतार के कुछ विशेष गुण थे जो उन्हें अन्य अवतारों से अलग करते हैं:

  • क्रोध और संयम: परशुराम को उनके क्रोध के लिए जाना जाता है, लेकिन यह क्रोध धर्म की रक्षा के लिए होता था।
  • अपराजेय योद्धा: उन्हें युद्ध कला में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
  • ब्राह्मण और क्षत्रिय गुणों का समन्वय: वे ब्राह्मण कुल में जन्मे थे लेकिन क्षत्रियों से भी अधिक वीर थे।
  • दीर्घायु: मान्यता है कि परशुराम चिरंजीवी हैं और आज भी जीवित हैं।

परशुराम के प्रमुख कार्य

21 बार क्षत्रियों का संहार

परशुराम ने हैहयवंशी क्षत्रिय राजा सहस्रार्जुन और उसके वंशजों का 21 बार संहार किया। यह कार्य उन्होंने अपने पिता की हत्या के बदले में किया था।

पृथ्वी का दान

क्षत्रियों के संहार के बाद परशुराम ने समस्त पृथ्वी को कश्यप ऋषि को दान कर दी और स्वयं महेंद्र पर्वत पर तपस्या करने चले गए।

रामायण और महाभारत में भूमिका

परशुराम ने रामायण काल में भगवान राम से और महाभारत काल में भीष्म, द्रोण व कर्ण को शिक्षा दी।

परशुराम से जुड़े प्रमुख मंदिर

भारत में परशुराम से जुड़े कई प्रसिद्ध मंदिर हैं:

  • परशुराम मंदिर, चिपलून (महाराष्ट्र)
  • परशुराम कुंड, अरुणाचल प्रदेश
  • जमदग्नि मंदिर, हिमाचल प्रदेश
  • परशुराम मंदिर, केरल

परशुराम अवतार की कथा हमें सिखाती है कि धर्म की रक्षा के लिए कठोर कदम उठाने भी पड़ सकते हैं। वे अहंकार के विरुद्ध और न्याय के पक्ष में खड़े होने का संदेश देते हैं।

परशुराम के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएं

माता रेणुका की कथा

एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, जब माता रेणुका का मन चित्ररथ नामक गंधर्व की ओर आकर्षित हुआ, तब पिता जमदग्नि के आदेश पर परशुराम ने अपनी माता का सिर धड़ से अलग कर दिया। बाद में जब पिता ने वरदान मांगने को कहा तो परशुराम ने माता को पुनर्जीवित करने की मांग की।

कामधेनु गाय की कथा

राजा सहस्रार्जुन ने जमदग्नि ऋषि की कामधेनु गाय को बलपूर्वक छीन लिया। इस पर परशुराम ने क्रोधित होकर सहस्रार्जुन और उसकी सेना का वध कर दिया।

पिता की हत्या और प्रतिशोध

सहस्रार्जुन के पुत्रों ने बदला लेने के लिए जमदग्नि ऋषि की हत्या कर दी। इस पर क्रोधित परशुराम ने 21 बार पृथ्वी से क्षत्रियों का संहार किया।

परशुराम और अन्य अवतारों से संबंध

परशुराम ने विष्णु के अन्य अवतारों के साथ भी संवाद किया:

  • राम से मिलन: सीता स्वयंवर के बाद जब राम ने शिव धनुष तोड़ा तो परशुराम ने उनका परीक्षण किया।
  • कृष्ण से संबंध: महाभारत में परशुराम ने कर्ण को शिक्षा दी थी जो बाद में कौरवों के पक्ष में लड़ा।
  • बलराम से: परशुराम ने बलराम को गदा युद्ध की शिक्षा दी थी।

परशुराम की शिक्षाएं

परशुराम के जीवन से हमें कई महत्वपूर्ण शिक्षाएं मिलती हैं:

  1. धर्म की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए
  2. अन्याय का किसी भी रूप में विरोध करना चाहिए
  3. माता-पिता और गुरु का आदर करना चाहिए
  4. अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है
  5. शक्ति का उपयोग धर्म के लिए ही करना चाहिए

"जो व्यक्ति अन्याय सहन करता है, वह अन्याय करने वाले से भी अधिक दोषी होता है।" - परशुराम

परशुराम के दिव्य अस्त्र

परशुराम को भगवान शिव से कई दिव्य अस्त्र प्राप्त हुए थे:

  • परशु: यह उनका प्रमुख अस्त्र था जिसके कारण उन्हें परशुराम कहा जाता है
  • विष्णु धनुष: भगवान विष्णु का दिव्य धनुष
  • ब्रह्मास्त्र: सबसे शक्तिशाली दिव्य अस्त्र
  • वैष्णवास्त्र: विष्णु द्वारा प्रदत्त अस्त्र

परशुराम का दर्शन और दर्शनशास्त्र

परशुराम ने धर्म, कर्तव्य और न्याय के बारे में गहन विचार किया। उनका दर्शन मुख्य रूप से निम्न बिंदुओं पर केंद्रित था:

धर्म की स्थापना

परशुराम का मानना था कि जब तक धर्म का पालन होता है, समाज सुचारू रूप से चलता है। लेकिन जब अधर्म बढ़ जाता है तो कठोर कदम उठाने आवश्यक हो जाते हैं।

शक्ति और ज्ञान का संतुलन

परशुराम ने शक्ति और ज्ञान के बीच संतुलन स्थापित किया। वे ब्राह्मण कुल में जन्मे थे लेकिन क्षत्रियों से भी अधिक वीर थे।

सामाजिक व्यवस्था

परशुराम ने वर्ण व्यवस्था में संतुलन बनाए रखने का प्रयास किया। जब क्षत्रिय अहंकारी हो गए तो उन्होंने उन्हें दंडित किया।

परशुराम का सांस्कृतिक प्रभाव

परशुराम की कथाओं ने भारतीय संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाला है:

  • साहित्य: विभिन्न पुराणों और महाकाव्यों में परशुराम की कथाएं मिलती हैं
  • कला: मंदिरों और चित्रकला में परशुराम को अक्सर दिखाया जाता है
  • नाटक और सिनेमा: कई टीवी शो और फिल्मों में परशुराम की कहानियां दिखाई गई हैं
  • लोक संस्कृति: विभिन्न क्षेत्रों में परशुराम से जुड़ी लोककथाएं प्रचलित हैं

परशुराम अवतार की कथा हमें सिखाती है कि धर्म की रक्षा के लिए कभी-कभी कठोर निर्णय लेने पड़ते हैं। वे अन्याय के विरुद्ध खड़े होने और सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश देते हैं।

परशुराम के जीवन से जुड़े रोचक तथ्य

  • परशुराम को 'चिरंजीवी' माना जाता है जो कल्पांत तक जीवित रहेंगे
  • मान्यता है कि परशुराम ने ही केरल राज्य की भूमि समुद्र से निकाली थी
  • वे एकमात्र ऐसे अवतार हैं जिन्होंने अपने गुरु (शिव) को पराजित किया
  • परशुराम ने भीष्म, द्रोण और कर्ण को शिक्षा दी जो महाभारत के प्रमुख पात्र थे
  • वे राम और कृष्ण दोनों अवतारों के समय उपस्थित थे

निष्कर्ष

परशुराम अवतार की कथा धर्म की रक्षा और अधर्म के विनाश का प्रतीक है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि अन्याय के सामने नहीं झुकना चाहिए और धर्म के मार्ग पर दृढ़ता से खड़े रहना चाहिए। परशुराम ने ब्राह्मण और क्षत्रिय गुणों का अद्भुत समन्वय प्रस्तुत किया जो आज भी प्रासंगिक है।

अगले भाग में हम परशुराम के जीवन की विस्तृत घटनाओं, उनके युद्ध कौशल और अन्य पहलुओं पर चर्चा करेंगे।

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