योगी आदित्यनाथ के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश में आम आदमी का पुलिस से भरोसा क्यों कम हुआ?
एक गहन विश्लेषण: कारण, आंकड़े और संभावित समाधान
परिचय: विश्वास का संकट
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री कार्यकाल (2017-वर्तमान) में उत्तर प्रदेश पुलिस व्यवस्था में व्यापक बदलावों का दावा किया गया है। "जीरो टॉलरेंस" की नीति, एनकाउंटर की घटनाओं में वृद्धि और तकनीकी हस्तक्षेप के बावजूद, आम नागरिकों और पुलिस के बीच विश्वास की खाई चौड़ी हुई है। यह लेख इसी विरोधाभास की पड़ताल करता है कि कड़े कानून व्यवस्था उपायों के बीच भी आम आदमी का पुलिस पर भरोसा कम क्यों हो रहा है।
भरोसा कम होने के प्रमुख कारण
1. पुलिसिया क्रूरता एवं मानवाधिकार उल्लंघन
यूपी पुलिस पर अत्यधिक बल प्रयोग, यातना और फर्जी मुठभेड़ों के गंभीर आरोप लगते रहे हैं:
- एनकाउंटर विवाद: 2017 से अब तक 180+ एनकाउंटरों में 500+ संदिग्धों के मारे जाने का दावा। मानवाधिकार संगठनों ने इनमें से कई को "न्यायिक हत्या" बताया है।
- हाथरस दुष्कर्म मामला (2020): पीड़िता के परिवार ने स्थानीय पुलिस पर मामले को दबाने और धमकाने के आरोप लगाए।
- प्रयागराज कांड (2022): एक व्यक्ति की पुलिस हिरासत में मौत के बाद हिंसक प्रदर्शन, जिसमें पुलिस फायरिंग में एक युवक की मौत।
2. भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी का साम्राज्य
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की 2021 रिपोर्ट के अनुसार, यूपी पुलिस भारत में सबसे भ्रष्ट पुलिस बलों में से एक है:
- थाना स्तर पर रिश्वत का बोलबाला (एफआईआर दर्ज करने से लेकर जांच तक)
- व्यापारियों से "हफ्ता" वसूली की शिकायतें
- पुलिस कर्मियों की अवैध संपत्ति के मामले सामने आना
3. राजनीतिक हस्तक्षेप और चयनात्मक कार्रवाई
पुलिस की तटस्थता पर सवाल उठते रहे हैं:
- विपक्षी नेताओं/कार्यकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई में तेजी
- सत्तारूढ़ दल के समर्थकों के मामलों में ढिलाई के आरोप
- CAA/NRC विरोधी प्रदर्शनों (2019-20) में कथित रूप से असंतुलित कार्रवाई
4. जातिगत पूर्वाग्रह और सामाजिक विषमता
दलित, आदिवासी, मुस्लिम और OBC समुदायों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार की नियमित शिकायतें:
- दलितों के खिलाफ हिंसा के मामलों में पुलिस की निष्क्रियता
- न्यायिक प्रणाली तक पहुँच में असमानता
- अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति संवेदनशीलता का अभाव
5. कानून व्यवस्था के दावे और जमीनी हकीकत का अंतर
सरकार द्वारा अपराध में कमी के दावे, पर जमीनी स्तर पर भय का माहौल:
- घोषित अपराध दर में कमी, पर छिपे अपराधों (डार्क फिगर) में वृद्धि
- पीड़ितों द्वारा थानों में शिकायत दर्ज न कराने की प्रवृत्ति
- पुलिस को "दंड देने वाली" एजेंसी के रूप में देखा जाना, "सेवक" के रूप में नहीं
6. संसाधनों की कमी और कर्मियों पर अत्यधिक दबाव
पुलिस व्यवस्था की संरचनात्मक कमजोरियाँ:
- भारी कर्मचारी कमी (यूपी पुलिस में 50% से अधिक रिक्तियाँ)
- एक कॉन्स्टेबल पर औसतन 761 नागरिकों की जिम्मेदारी (आदर्श 1:450)
- अपर्याप्त प्रशिक्षण और मानसिक स्वास्थ्य सहायता की कमी
आंकड़ों और सर्वेक्षणों की कहानी
भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल 2021:
यूपी पुलिस: 41% भ्रष्ट (राष्ट्रीय औसत: 31%)
मुठभेड़ों का आँकड़ा
यूपी सरकार के आधिकारिक डेटा (2017-2023):
180+ एनकाउंटर, 500+ संदिग्ध मारे गए
जनता का विश्वास
लोकनीति फाउंडेशन सर्वे 2022:
केवल 26% यूपी निवासी पुलिस पर भरोसा करते हैं
एनसीआरबी डेटा का विश्लेषण
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं:
- पुलिस हिरासत में मौत के मामलों में यूपी लगातार शीर्ष पर (2021 में 18 मौतें)
- पुलिस कर्मियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई में वृद्धि (2020-2021 में 42% वृद्धि)
- महिलाओं के खिलाफ अपराध में उल्लेखनीय कमी नहीं
प्रमुख विवादास्पद घटनाएँ: केस स्टडीज
1. हाथरस दुष्कर्म कांड (2020)
दलित युवती के सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के मामले में पुलिस आचरण पर राष्ट्रीय स्तर पर सवाल उठे:
- पीड़िता के शव का रात्रि में जल्दीबाजी में दाह संस्कार
- परिवार को हिरासत में लेने और पत्रकारों की पहुँच रोकने के आरोप
- CBI जाँच में पुलिस की गंभीर लापरवाही पाई गई
2. विजय काशी एनकाउंटर (2023)
कानपुर के गैंगस्टर विजय काशी के एनकाउंटर पर उठे सवाल:
- पुलिस ने दावा किया कि वह फरार था, परिवार ने कहा वह पुलिस हिरासत में था
- सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए जाँच आदेश दिया
- एनकाउंटर की प्रामाणिकता पर सवाल
3. CAA विरोध प्रदर्शनों में पुलिस कार्रवाई
2019-20 के दौरान प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्रवाई:
- लखनऊ में पुलिस फायरिंग में मौतें
- प्रदर्शनकारियों पर गंभीर आरोपों में मुकदमे दर्ज
- कथित तौर पर निर्दोष लोगों की मनमानी गिरफ्तारी
सरकारी प्रयास और उनकी सीमाएँ
1. पुलिस सुधार के दावे
योगी सरकार ने कई पहलों की घोषणा की:
- मिशन शक्ति: महिला सुरक्षा को समर्पित अभियान
- एंटी-रोमियो स्क्वॉड: महिलाओं के उत्पीड़न रोकने हेतु
- पुलिस आधुनिकीकरण: नई गाड़ियाँ, हथियार और तकनीक
2. 1090 वूमेन पावर लाइन
महिला शिकायतों के त्वरित निस्तारण हेतु डिजिटल पहल:
- प्रारंभिक सफलता के बाद शिकायत निस्तारण में देरी
- पीड़िताओं को पर्याप्त सुरक्षा न मिलने की शिकायतें
सफलता में बाधाएँ
इन पहलों के प्रभावी होने में चुनौतियाँ:
- संसाधन अभाव: पर्याप्त मानव संसाधन और बजट का अभाव
- संस्थागत सुधारों की कमी: प्रशिक्षण, जवाबदेही तंत्र में सुधार न होना
- राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव: वास्तविक सुधार के बजाय प्रतीकात्मक कदम
विशेषज्ञ विश्लेषण: क्या कहते हैं जानकार?
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का दृष्टिकोण
"एनकाउंटर राज्य की नीति बन गई है जो कानून के शासन को कमजोर करती है। आम नागरिक पुलिस को डर की नजर से देखने लगे हैं।" - सुधा भारद्वाज, मानवाधिकार वकील
पूर्व पुलिस अधिकारियों की राय
"पुलिसिंग का मूल उद्देश्य लोगों की सेवा करना है, न कि उन्हें दंडित करना। जब तक पुलिस जवाबदेह नहीं होगी, जनता का भरोसा नहीं जीता जा सकता।" - जुलियस रिबेरो, पूर्व DGP
राजनीतिक विश्लेषकों का मूल्यांकन
"सरकार ने पुलिस को राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है, जिससे उसकी तटस्थता और विश्वसनीयता दोनों प्रभावित हुई हैं।" - प्रो. बद्री नारायण, सामाजिक विज्ञान विशेषज्ञ
भरोसा बहाल करने के रास्ते: संभावित समाधान
उत्तर प्रदेश में पुलिस-जनता विश्वास बहाली के लिए जरूरी कदम:
1. संस्थागत सुधार
- पुलिस अधिनियम, 1861 की जगह आधुनिक कानून लागू करना
- पुलिस आयोग की सिफारिशें (जैसे रिबेरो कमिटी) लागू करना
- पुलिस जवाबदेही तंत्र मजबूत करना
2. व्यवहार परिवर्तन
- कर्मियों को संवेदनशीलता और मानवाधिकार प्रशिक्षण
- भ्रष्टाचार रोकने के लिए सख्त कार्रवाई
- सामुदायिक पुलिसिंग मॉडल को बढ़ावा
3. तकनीकी सशक्तिकरण
- ई-एफआईआर सिस्टम को सभी थानों में लागू करना
- क्राइम मैपिंग और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग
- शिकायत निवारण में पारदर्शिता
निष्कर्ष: सुधार की राह
योगी आदित्यनाथ सरकार ने उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था को प्राथमिकता दी है, परंतु "कानून के शासन" और "पुलिस के शासन" के बीच का अंतर धुंधला हो गया है। भरोसा कम होने के मूल में संस्थागत कमजोरियाँ, राजनीतिक दबाव और मानवाधिकारों की अनदेखी है। सच्चा सुधार केवल कड़ी कार्रवाई से नहीं, बल्कि जवाबदेही, पारदर्शिता और नागरिक-केंद्रित पुलिसिंग से आएगा। जब तक पुलिस "सेवक" नहीं बनेगी, "भय का प्रतीक" बनी रहेगी, तब तक आम आदमी का विश्वास नहीं जीता जा सकता।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
योगी सरकार में उत्तर प्रदेश पुलिस की छवि कैसी है?
यूपी पुलिस की छवि "कठोर" और "दमनकारी" के रूप में बदल गई है। आम जनता में एक डर का माहौल है, खासकर अल्पसंख्यक और वंचित समुदायों में। हालांकि सरकार दावा करती है कि इसने अपराधियों में डर पैदा किया है, पर सामान्य नागरिक भी पुलिस से घबराने लगे हैं।
क्या यूपी में एनकाउंटर से अपराध वास्तव में कम हुए हैं?
सरकारी आंकड़े कुछ बड़े अपराधों में कमी दिखाते हैं, पर विशेषज्ञ इसके कारणों पर सवाल उठाते हैं। मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि एनकाउंटर से अपराध दर पर स्थायी प्रभाव नहीं पड़ता, बल्कि इससे न्यायिक प्रक्रिया कमजोर होती है और पुलिस की जवाबदेही घटती है।
आम नागरिक पुलिस के खिलाफ शिकायत कैसे दर्ज कराए?
यूपी में पुलिस के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के विकल्प:
- पुलिस अधीक्षक (SP) कार्यालय: जिला स्तर पर लिखित शिकायत
- राज्य पुलिस महानिदेशक (DGP) हेल्पलाइन: 112 या 1090 (महिलाएं)
- राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC): मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायतें
- जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA): निःशुल्क कानूनी सहायता
क्या यूपी पुलिस में जातिगत भेदभाव की समस्या है?
हाँ, कई स्वतंत्र अध्ययनों और घटनाओं (जैसे हाथरस मामला) से पता चलता है कि यूपी पुलिस में गहरा जातिगत पूर्वाग्रह मौजूद है। दलित और आदिवासी समुदायों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार, उनकी शिकायतों को गंभीरता से न लेना और उच्च जातियों के प्रति ढील बरतना आम आरोप हैं।
यूपी पुलिस में सुधार के लिए कौन सी समितियों की सिफारिशें लागू होनी चाहिए?
मुख्य सिफारिशें:
- रिबेरो कमेटी (1998): पुलिस को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त करना
- प्रकाश सिंह केस (सुप्रीम कोर्ट 2006): पुलिस स्टेट बोर्ड, जवाबदेही आयोग बनाना मलिमथ समिति (2003): सामुदायिक पुलिसिंग और पारदर्शिता
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